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रामचरित मानस


चौपाई :


* कहइ भसुंड सुनहु खगनायक। राम चरित सेवक सुखदायक॥


नृप मंदिर सुंदर सब भाँती। खचित कनक मनि नाना जाती॥1॥

भावार्थ:-भुशुण्डिजी कहने लगे- हे पक्षीराज! सुनिए, श्री रामजी का चरित्र सेवकों को सुख देने वाला है। (अयोध्या का) राजमहल सब प्रकार से सुंदर है। सोने के महल में नाना प्रकार के रत्न जड़े हुए हैं॥1॥

* बरनि न जाइ रुचिर अँगनाई। जहँ खेलहिं नित चारिउ भाई॥


बाल बिनोद करत रघुराई। बिचरत अजिर जननि सुखदाई॥2॥

भावार्थ:-सुंदर आँगन का वर्णन नहीं किया जा सकता, जहाँ चारों भाई नित्य खेलते हैं। माता को सुख देने वाले बालविनोद करते हुए श्री रघुनाथजी आँगन में विचर रहे हैं॥2॥

* मरकत मृदुल कलेवर स्यामा। अंग अंग प्रति छबि बहु कामा॥


नव राजीव अरुन मृदु चरना। पदज रुचिर नख ससि दुति हरना॥3॥

भावार्थ:-मरकत मणि के समान हरिताभ श्याम और कोमल शरीर है। अंग-अंग में बहुत से कामदेवों की शोभा छाई हुई है। नवीन (लाल) कमल के समान लाल-लाल कोमल चरण हैं। सुंदर अँगुलियाँ हैं और नख अपनी ज्योति से चंद्रमा की कांति को हरने वाले हैं॥3॥

* ललित अंक कुलिसादिक चारी। नूपुर चारु मधुर रवकारी॥


चारु पुरट मनि रचित बनाई। कटि किंकिनि कल मुखर सुहाई॥4॥

भावार्थ:-(तलवे में) वज्रादि (वज्र, अंकुश, ध्वजा और कमल) के चार सुंदर चिह्न हैं, चरणों में मधुर शब्द करने वाले सुंदर नूपुर हैं, मणियों, रत्नों से जड़ी हुई सोने की बनी हुई सुंदर करधनी का शब्द सुहावना लग रहा है॥4॥

दोहा :


* रेखा त्रय सुंदर उदर नाभी रुचिर गँभीर।


उर आयत भ्राजत बिबिधि बाल बिभूषन चीर॥ 76॥

भावार्थ:-उदर पर सुंदर तीन रेखाएँ (त्रिवली) हैं, नाभि सुंदर और गहरी है। विशाल वक्षःस्थल पर अनेकों प्रकार के बच्चों के आभूषण और वस्त्र सुशोभित हैं॥ 76॥

चौपाई :


* अरुन पानि नख करज मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर॥


कंध बाल केहरि दर ग्रीवा। चारु चिबुक आनन छबि सींवा॥1॥

भावार्थ:-लाल-लाल हथेलियाँ, नख और अँगुलियाँ मन को हरने वाले हैं और विशाल भुजाओं पर सुंदर आभूषण हैं। बालसिंह (सिंह के बच्चे) के से कंधे और शंख के समान (तीन रेखाओं से युक्त) गला है। सुंदर ठुड्डी है और मुख तो छवि की सीमा ही है॥1॥

* कलबल बचन अधर अरुनारे। दुइ दुइ दसन बिसद बर बारे॥


ललित कपोल मनोहर नासा। सकल सुखद ससि कर सम हासा॥2॥

भावार्थ:-कलबल (तोतले) वचन हैं, लाल-लाल होठ हैं। उज्ज्वल, सुंदर और छोटी-छोटी (ऊपर और नीचे) दो-दो दंतुलियाँ हैं। सुंदर गाल, मनोहर नासिका और सब सुखों को देने वाली चंद्रमा की (अथवा सुख देने वाली समस्त कलाओं से पूर्ण चंद्रमा की) किरणों के समान मधुर मुस्कान है॥2॥

* नील कंज लोचन भव मोचन। भ्राजत भाल तिलक गोरोचन॥


बिकट भृकुटि सम श्रवन सुहाए। कुंचित कच मेचक छबि छाए॥3॥

भावार्थ:-नीले कमल के समान नेत्र जन्म-मृत्यु (के बंधन) से छुड़ाने वाले हैं। ललाट पर गोरोचन का तिलक सुशोभित है। भौंहें टेढ़ी हैं, कान सम और सुंदर हैं, काले और घुँघराले केशों की छबि छा रही है॥3॥


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